समझ की डिग्री: कबीर से लेकर आज की राजनीति तक -प्रो देव प्रकाश मिश्र।
आज के सार्वजनिक आयाम में डिग्रियों की होड़ ने हमें एक रहस्यमयी बहस सिखा दी है — क्या वास्तविक योग्यता कागज़ पर लिखी हुई डिग्री है या जीवन, संवेदना और काम की कुशलता? कबीर, रविदास और मलूकदास जैसी परंपराएँ हमें बार-बार याद दिलाती हैं