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समझ की डिग्री: कबीर से लेकर आज की राजनीति तक -प्रो देव प्रकाश मिश्र।

Editor : Shubham awasthi | 06 October, 2025

आज के सार्वजनिक आयाम में डिग्रियों की होड़ ने हमें एक रहस्यमयी बहस सिखा दी है — क्या वास्तविक योग्यता कागज़ पर लिखी हुई डिग्री है या जीवन, संवेदना और काम की कुशलता? कबीर, रविदास और मलूकदास जैसी परंपराएँ हमें बार-बार याद दिलाती हैं

समझ की डिग्री: कबीर से लेकर आज की राजनीति तक -प्रो देव प्रकाश मिश्र।

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समझ वही सच्ची डिग्री है जो समाज को दिशा दे।

हमारे सार्वजनिक जीवन का एक विचित्र स्वरूप बन गया है — हर कोई कितनी-न-कितनी डिग्रियाँ लेकर चल रहा है और राजनीतिक क्षेत्र में यह न केवल एक विकल्प बन कर रह गई है, बल्कि वैधता का पैमाना समझ ली जा रही है। परन्तु क्या किसी नेता की वास्तविक मापदण्डी केवल उसके पास मौजूद प्रमाणपत्र हैं? क्या उसकी कार्य-प्रणाली, लोगों के साथ उसकी समझ, निर्णय लेने की क्षमता और जनहित की प्राथमिकता इनसे कम महत्वपूर्ण हैं? बिल्कुल नहीं। इसीलिए कहा जा सकता है कि डिग्री सिर्फ़ आरम्भ है; असली परीक्षा तो व्यवहार और समझ की है।

कबीर के उस प्रसिद्ध दोहे का अर्थ आज भी उतना ही प्रासंगिक है —

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय; ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

यह बताता है कि ज्ञान का सार पुस्तकों और प्रमाणपत्रों में नहीं, इंसान के भीतर प्रेम, विवेक और अनुभव के मेल में होता है। कबीर, रविदास और मलूकदास जैसे विचारकों के पास विश्वविद्यालयी डिग्री नहीं थी, पर उनके संदेश और विवेक आज के विश्वविद्यालयों के शैक्षिक अध्ययनों का हिस्सा हैं। यह पुराने संस्थागत विचारधाराओं पर एक तीखा प्रश्नचिन्ह है — क्या ज्ञान को सिर्फ़ संस्थागत सीमाओं में बाँधा जा सकता है?

आज की राजनीति में यह विरोधाभास और भी तीखा दिखाई देता है। कुछ चेहरे हैं जो बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ लेकर भी जनता से कटे हुए नज़र आते हैं, वहीं कई ऐसे नेता रहे हैं जिनके पास औपचारिक शिक्षा का बड़ा शिखर नहीं था, पर वे जनता की नब्ज़ समझते थे और जीवन के कठोर अनुभवों से सरकार चलाने का हुनर सीख चुके थे। इसलिए नेता की परख उसके दस्तावेज़ से नहीं, उसके कार्य-नैतिकता, निर्णय-क्षमता और जनता के प्रति संवेदनशीलता से होनी चाहिए।

और यह आश्चर्यजनक भी नहीं कि आज कुछ राजनेता बेवकूफों की तरह दूसरों की डिग्रियों की छानबीन करते दिखते हैं — न कि उनके वास्तविक काम करने की क्षमता की। जनता को भ्रमित कर देना और दिखावा करना कुछ लोगों की आदत बन चुका है। अरे, आप डिग्री का जुगाड़ करके कौन सा तीर मार लिए हो? अगर मकसद सिर्फ़ दस्तावेज़ से प्रतिष्ठा पाना है, तो वह अस्थायी गौरव है; असली जीत तो काम करके, जनता की ज़िंदगियों में सकारात्मक परिवर्तन ला कर मिलती है।

डिग्रियों का महत्त्व नकारा नहीं जा सकता वे शिक्षण की एक प्रमाणिकता देती हैं, अवसर खोलती हैं और योग्यताओं का प्रारम्भिक संकेत बनती हैं। पर यही डिग्रियाँ जब अकेली मापदंड बन जाएँ और समझ, संवेदना व काम-कुशलता पीछे छूट जाएँ, तब समाज एक खतरनाक मोड़ पर पहुँच जाता है। दलाल-राष्ट्रवाद, कागज़ों की राजनीति और दिखावटी योग्यता से देश का बुनियादी विकास प्रभावित होता है। असली नेतृत्व जनता के दर्द को समझकर नीतियाँ बनाने में है, न कि केवल कागज़ों में निपुणता दिखाने में।

इस संदर्भ में हमें शिक्षा व्यवस्था पर भी विचार करना होगा। विश्वविद्यालय और संस्थान जहाँ ज्ञान प्रदान करते हैं, वहीं उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पढ़ाई केवल सैद्धान्तिक न रह जाए। शिक्षा का लक्ष्य नौकरी पाना ही नहीं, बल्कि विवेक-ज्ञान, समाज के प्रति उत्तरदायित्व और व्यावहारिक कौशल का विकास होना चाहिए। पाठ्यक्रमों में जीवन-आधारित शिक्षण, सामुदायिक अनुभव और नैतिकता पर ज़ोर देने की आवश्यकता है ताकि डिग्री धारक केवल कागज़ के भरोसे समाज को नहीं गुमराह करें।

राजनीति में पारदर्शिता और कार्य-क्षमता की माँग भी उसी से जुड़ी है। चुनावी प्रक्रिया और सार्वजनिक निर्णय लेने के तरीके तभी मजबूत होंगे जब जनता यह समझने लगे कि नेता की परख केवल उसकी शब्द-सज्जा या कागज़ों की संख्या से नहीं, उसके करिश्माई वाग्मिता और दिखावे से भी नहीं, बल्कि उसके कार्यों से होती है। अन्यथा हम एक ऐसी राजनीति बनाते हैं जहाँ छवि संचालित हो और असल काम पिछड़ जाए।

अंततः, समाज का मानदंड यही होना चाहिए कि डिग्री एक आरम्भिक योग्यता है, पर समझ, संवेदना और काम-कुशलता वह अंतिम मापदंड है जो किसी व्यक्ति को सच्चा नेता, सच्चा शिक्षक या सच्चा नागरिक बनाती है। कबीर, रविदास और मलूकदास की परंपरा हमें यही सिखाती है कि ज्ञान का असली खज़ाना जीवन में अनुभव और आत्मनिरीक्षण में मिलता है न कि केवल कागज़ों के ढेर में।

डिग्री फॉर्मल पहचान है; समझ जीवन की पहचान।

राजनेता अगर जनता को बेवकूफ बनाना छोड़ जग-ज़िंदगी सुधारने लगें, तो देश की असली प्रगति वहीं से आरम्भ होगी।