बयान ट्रम्प का, तैयारी भारत की क्या वाकई व्यापार से टल सकता है युद्ध?
Editor : Anjali Mishra | 02 June, 2025
बयान बनाम बंदोबस्त सुरक्षा की असली लड़ाई कहाँ लड़ी जा रही है?

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जब अमेरिकी राष्ट्रपति दावा करे कि उसने भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रोक दिया तो चौंकना लाज़मी है। लेकिन क्या सिर्फ़ एक बयान से जंग टल जाती है? वहीं दूसरी ओर, भारत चुपचाप अपनी सीमाओं पर 'ऑपरेशन शील्ड' चला रहा है। सवाल अब ये है।क्या असली सुरक्षा डीलिंग टेबल पर होती है, या ज़मीन पर ढाल उठाकर?
अमेरिकी राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है, जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच एक संभावित परमाणु युद्ध को सिर्फ व्यापारिक कूटनीति से टाल दिया था। ट्रम्प का कहना है कि यह उनकी सबसे "महान उपलब्धियों" में से एक है, और इसे दुनिया को समझने की जरूरत है।ट्रम्प ने यह भी कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था, उन्होंने दोनों देशों से बैकचैनल बातचीत के ज़रिए ऐसी व्यापारिक संरचना बनाई जिससे तनाव कम हुआ। हालांकि, भारत की तरफ से इस दावे की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन सवाल उठता है क्या वाकई व्यापार से टल सकता है परमाणु युद्ध?इधर भारत ने "ऑपरेशन शील्ड" नाम से पाकिस्तान सीमा से सटे राज्यों में नागरिक सुरक्षा अभ्यास शुरू किया है। इस बड़े पैमाने पर चल रहे अभ्यास का उद्देश्य युद्ध या आपात स्थितियों में नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसमें बंकरों की समीक्षा, आपातकालीन निकासी अभ्यास और सार्वजनिक चेतावनी प्रणाली की जांच शामिल है।
ट्रम्प का दावा और भारत की तैयारी, दोनों एक साथ रखे जाएं तो एक गहरी तस्वीर उभरती है।जहाँ एक ओर वैश्विक नेता शांति और कूटनीति की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत भारत को हर संभावित खतरे के लिए तैयार रहने को मजबूर कर रही है।
सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रम्प के बयान में ‘सियासी रंग’ हो सकता है, लेकिन भारत की तैयारी यह दिखाती है कि सीमाओं पर खतरा अब भी पूरी तरह टला नहीं है। पाकिस्तान के आंतरिक हालात और सीमा पार आतंकवाद को देखते हुए भारत कोई चूक नहीं करना चाहता।
जहाँ अमेरिका खुद को वैश्विक संकटमोचक के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है, वहीं भारत 'आत्मनिर्भर सुरक्षा' की राह पर चल रहा है। ऑपरेशन शील्ड इसी नीति का एक हिस्सा है, जो दिखाता है कि भारत अब संभावित युद्ध की बातों पर भरोसा नहीं, तैयारी करता है।
राजनीतिक दृष्टि से भी यह कड़ी अहम है।2025 के चुनाव नज़दीक हैं और सरकार जनता को यह संदेश देना चाहती है कि देश की सुरक्षा सर्वोपरि है। ऐसे में ट्रम्प के दावों को एक ओर रख, भारत ज़मीन पर अपना सुरक्षा कवच कस रहा है।ट्रम्प के इस बयान पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया भी दिलचस्प रही। इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने इस पर चुप्पी साध ली, जबकि पाकिस्तान सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि "ट्रम्प की बातें हमेशा चुनावी टाइमिंग के हिसाब से आती हैं, ज़मीनी हालात के हिसाब से नहीं।" साफ है, ट्रम्प के बयान पर पाकिस्तान भी असहज है।विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प का यह दावा 2024 की अमेरिकी चुनावी राजनीति से प्रेरित हो सकता है, जहाँ उन्हें अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के रूप में कुछ ठोस दिखाने की जरूरत है।भारत-पाक के बीच की कूटनीति और तनाव को इस तरह निजी उपलब्धि बताना, राजनीतिक हित साधने की रणनीति हो सकती है।लेकिन भारत में "ऑपरेशन शील्ड" को लेकर जो तैयारी दिख रही है, वह किसी बयान का जवाब नहीं, बल्कि पाकिस्तान से जुड़ी मौजूदा और भविष्य की सुरक्षा चिंताओं का नतीजा है।
हाल ही में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कई ड्रोन मूवमेंट और सीमा पार से हथियारों की सप्लाई को रोका है, जिससे खतरे की गंभीरता साफ होती है।गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक "ऑपरेशन शील्ड" के तहत ऐसे इलाकों में मॉक ड्रिल की जा रही है जहाँ अतीत में आतंकी घुसपैठ या गोलाबारी हो चुकी है। यह केवल सेना नहीं, बल्कि आम नागरिकों के बीच भी सुरक्षा जागरूकता फैलाने की कोशिश है यानी हर नागरिक को 'पहला उत्तरदाता' बनाना।राजनीतिक रूप से देखा जाए तो मोदी सरकार इस अभ्यास के ज़रिए एक स्पष्ट संदेश देना चाहती है।कि जब दुनिया केवल बयानबाज़ी में उलझी है, भारत अपनी ज़मीन पर पूरी तैयारी में जुटा है। यह उस ‘मजबूत नेतृत्व’ की छवि को भी आगे बढ़ाता है जिसे भाजपा बार-बार दोहराती रही है।विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इस रणनीति को ‘डर फैलाने की राजनीति’ बताता रहा है। उनका तर्क है कि जब सीमा पर हालात सामान्य हैं, तब इतने बड़े पैमाने पर नागरिक सुरक्षा अभ्यास का मकसद केवल राजनीतिक लाभ उठाना है। लेकिन सरकार इसे भविष्य के लिए ज़रूरी "प्रोएक्टिव अप्रोच" मानती है।
अमेरिका, चीन, रूस जैसे देशों की नजरों में भारत का यह ‘सुरक्षा-सचेत राष्ट्र’ बनना, वैश्विक रणनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर रहा है। अमेरिका खुद चाहता है कि भारत इंडो-पैसिफिक में एक ताकतवर सहयोगी के रूप में उभरे, ऐसे में ‘ऑपरेशन शील्ड’ जैसे कदम उनकी नीति के अनुकूल भी हैं।
अंततः, जब एक तरफ़ ट्रम्प के शब्द अंतरराष्ट्रीय मंच पर गूंजते हैं, वहीं भारत की तैयारी ज़मीन पर दिखती है। यही फर्क है बयान और योजना में, इरादे और इंतज़ाम में। आने वाले महीनों में क्या भारत को ऐसे दावों पर भरोसा करना चाहिए, या अपनी ‘ढाल’ और ‘तलवार’ खुद मजबूत रखनी चाहिए।ये फैसला अब जनता के विवेक पर है।
अब देखना ये होगा कि भविष्य में जब फिर भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ेगा, तो इतिहास किसे सही ठहराएगा ट्रम्प के व्यापारिक कूटनीति को या भारत की ज़मीनी रणनीति को?