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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए NDA में सीट शेयरिंग क्या बन रहे समीकरण

Editor : Shubham awasthi | 08 June, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं, और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा अपने चरम पर है। बिहार की सियासत में एनडीए एक मजबूत गठबंधन के रूप में उभरा है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (एलजेपी-आर), हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (एचएएम)

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए NDA में सीट शेयरिंग क्या बन रहे समीकरण

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राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) जैसे दल शामिल हैं। इस गठबंधन में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करना एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि हर दल अपनी ताकत और प्रभाव को अधिकतम करने की कोशिश में है बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, और किसी भी गठबंधन या दल को सरकार बनाने के लिए कम से कम 122 सीटों की आवश्यकता होती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, जिसमें बीजेपी को 74, जेडीयू को 43, और अन्य सहयोगी दलों को शेष सीटें मिली थीं। उस समय जेडीयू के खराब प्रदर्शन और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की बगावत ने गठबंधन की एकता पर सवाल उठाए थे। 2025 का चुनाव इस मायने में महत्वपूर्ण है कि यह नीतीश कुमार के नेतृत्व, बीजेपी की रणनीति, और चिराग पासवान की नई भूमिका को परखेगा।

इसके अलावा, विपक्षी महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस, और वामपंथी दल शामिल हैं, भी इस चुनाव को एक बड़े अवसर के रूप में देख रहा है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ने 2020 में 110 सीटें जीती थीं और इस बार सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत लगा रहा है। ऐसे में एनडीए के लिए सीट बंटवारे का फॉर्मूला न केवल गठबंधन की एकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी तय करेगा कि क्या वे महागठबंधन को कड़ी टक्कर दे पाएंगे।

बिहार विधानसभा की 243 सीटों के बंटवारे के लिए एनडीए में एक बेसिक फॉर्मूला तैयार किया जा रहा है। इस फॉर्मूले के तहत:

जेडीयू: नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू को 102-103 सीटें मिलने की संभावना है। यह संख्या जेडीयू को गठबंधन का सबसे बड़ा दल बनाए रखेगी, जो नीतीश कुमार की सियासी ताकत को दर्शाता है। जेडीयू ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटें जीती थीं, जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़ा है।


बीजेपी: भारतीय जनता पार्टी को 101-102 सीटें मिल सकती हैं। बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटें जीती थीं। बिहार में बीजेपी की मजबूत संगठनात्मक संरचना और कार्यकर्ताओं का उत्साह इसे गठबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है।

एलजेपी (रामविलास): चिराग पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी (आर) 25-28 सीटों पर दावेदारी कर रही है, लेकिन कुछ खबरों के अनुसार वह 40 से अधिक सीटों की मांग कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी को 5 सीटें दी गई थीं, और उसने सभी सीटें जीती थीं, जिसके बाद चिराग पासवान का कद बढ़ा है। उनकी पार्टी दलित और पासवान समुदाय के बीच मजबूत प्रभाव रखती है, जो बिहार की लगभग 6% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (एचएएम): जीतन राम मांझी की पार्टी को 6-8 सीटें मिलने की उम्मीद है। 2024 के लोकसभा चुनाव में एचएएम को 1 सीट दी गई थी, जिसे उसने जीता था। मांझी का प्रभाव दलित समुदाय के एक हिस्से में है, और उनकी पार्टी छोटे स्तर पर प्रभावी है।

राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम): उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 3-5 सीटें मिल सकती हैं। 2024 में आरएलएम को 1 सीट दी गई थी, और वह भी जीतने में सफल रही थी। कुशवाहा का प्रभाव कोइरी और कुशवाहा समुदाय में है, जो बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह फॉर्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 30 सीटें जीती थीं। इस प्रदर्शन ने गठबंधन को आत्मविश्वास दिया है, लेकिन विधानसभा चुनाव की गतिशीलता लोकसभा चुनाव से अलग होती है, जिसके कारण सीट बंटवारे में सावधानी बरती जा रही है।

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय करने के लिए एनडीए में दो स्तरों पर चर्चा हो रही है। पहले, राज्य स्तर पर बीजेपी, जेडीयू, और अन्य सहयोगी दलों के नेता बैठकर एक प्रारंभिक समझौता तैयार करेंगे। इसके बाद, अंतिम फैसला दिल्ली में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और जेडीयू के शीर्ष नेताओं की बैठक में लिया जाएगा। यह प्रक्रिया जटिल है, क्योंकि इसमें न केवल सीटों की संख्या, बल्कि प्रत्येक दल की जीत की संभावना, क्षेत्रीय प्रभाव, और जातिगत समीकरणों को भी ध्यान में रखना होगा।

1. जातिगत समीकरणों का महत्व

बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। बीजेपी का प्रभाव मुख्य रूप से ऊपरी जातियों (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार) और कुछ ओबीसी समुदायों में है। जेडीयू का आधार कुर्मी, कोइरी, और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में मजबूत है। एलजेपी (आर) का प्रभाव पासवान समुदाय में है, जबकि एचएएम और आरएलएम क्रमशः मांझी और कुशवाहा समुदायों पर निर्भर हैं। इन समीकरणों को संतुलित करना एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती है।

2. चिराग पासवान की बढ़ती मांग

चिराग पासवान का 40 से अधिक सीटों की मांग करना गठबंधन के लिए एक नई चुनौती बन गया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने जेडीयू के खिलाफ बगावत कर अपनी अलग राह चुनी थी, जिसके कारण जेडीयू को नुकसान हुआ था। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग की वापसी और उनकी पार्टी का शत-प्रतिशत प्रदर्शन उनके आत्मविश्वास को बढ़ा रहा है। उनकी मांग बीजेपी और जेडीयू के लिए असहज हो सकती है, क्योंकि इससे सीटों का संतुलन बिगड़ सकता है

3. नीतीश कुमार और बीजेपी का टकराव

जेडीयू और बीजेपी के बीच बराबर सीटों का बंटवारा नीतीश कुमार की सियासी स्थिति को दर्शाता है। नीतीश बिहार में एनडीए के चेहरे के रूप में स्थापित हैं, और उनकी पार्टी को सबसे अधिक सीटें देने की रणनीति गठबंधन की एकता को बनाए रखने के लिए जरूरी है। हालांकि, बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि उनकी पार्टी को अधिक सीटें मिलनी चाहिए, क्योंकि बीजेपी का संगठन और कार्यकर्ता आधार जेडीयू से अधिक मजबूत है।


4. छोटे दलों की भूमिका

एचएएम और आरएलएम जैसे छोटे दल गठबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे विशिष्ट जातिगत समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दलों को संतुष्ट करना भी एनडीए के लिए जरूरी है, लेकिन उनकी सीटों की संख्या सीमित रखी जाएगी ताकि बड़े दलों का हित प्रभावित न हो