क्या है ऑफिसर अनुज चौधरी का तबादला ? और क्या कह रही है जनता?
Editor : Anjali Mishra | 03 May, 2025
संभल जिले में कानून व्यवस्था की तस्वीर को बदलने वाले अफसर के तौर पर उभरे CO अनुज चौधरी

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संभल से एक बड़ी प्रशासनिक खबर सामने आई है।
जनता के बीच बेहद लोकप्रिय और सख्त कार्रवाई के लिए पहचाने जाने वाले सर्किल ऑफिसर अनुज चौधरी का तबादला कर दिया गया है।
इस फैसले ने न सिर्फ शहर में चर्चा छेड़ दी है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी लोगों की भावनाएं उफान पर हैं।
क्या है ऑफिसर अनुज चौधरी का तबादला ? और क्या कह रही है जनता?
संभल जिले में कानून व्यवस्था की तस्वीर को बदलने वाले अफसर के तौर पर उभरे CO अनुज चौधरी का नाम पिछले कुछ महीनों में चर्चा में रहा है।
अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख, आम जनता से सीधा संवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति ने उन्हें लोगों का पसंदीदा अफसर बना दिया था।
चाहे वो अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान हो, या महिला सुरक्षा से जुड़ी पहल अनुज चौधरी की सक्रियता हर मोर्चे पर साफ दिखाई दी।जिस दिन से अनुज जी आए थे, हमें लगा अब कोई हमारी सुनने वाला है। उनका तबादला होना हमारे लिए बड़ा झटका है।अवैध वसूली और गुंडागर्दी पर इन्होंने लगाम लगाई थी। अब फिर से हालात बिगड़ने का डर है।सरकारी आदेश के मुताबिक, CO अनुज चौधरी को अब ट्रांसफर कर दिया गया है।
पुलिस विभाग की ओर से इसे सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया बताया गया है।हालांकि सूत्रों की मानें, तो कुछ प्रभावशाली वर्ग उनकी सख्त कार्यशैली से असहज थे और यही वजह तबादले का कारण बन सकती है।संभल जैसे संवेदनशील जिले में अगर अनुशासनप्रिय अधिकारी को हटाया जाता है, तो यह कई सवाल खड़े करता है।
कहीं न कहीं यह राजनीतिक दबाव का संकेत हो सकता है।
सोशल मीडिया पर #BringBackAnujChaudhary और #JusticeForAnuj जैसी मुहिमें शुरू हो गई हैं।
लोगों का कहना है कि जिन अफसरों पर जनता को भरोसा होता है, उन्हें इस तरह हटाना प्रशासनिक विश्वास को कमजोर करता है।
CO अनुज चौधरी को संभल में तैनात किए जाने के बाद से अपराधियों के हौसले पस्त हो गए थे।
उन्होंने न केवल कई पुराने मामलों की फाइलें खोल कर जांच शुरू कीं, बल्कि दबंगों और भूमाफियाओं के खिलाफ खुली कार्रवाई कर उन्हें जेल भेजा।
यही वजह थी कि उन्हें एक ‘एक्शन अफसर’ के तौर पर पहचान मिली।संभल में लगातार बढ़ रहे सांप्रदायिक तनाव और अवैध निर्माण के मामलों में भी CO अनुज ने संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई की।
उन्होंने विवादित इलाकों में फ्लैग मार्च कराया, और दोनों समुदायों के नेताओं से संवाद कर विवाद को शांति से सुलझाया।
यह उनकी सूझबूझ ही थी कि कई बार बड़ा टकराव टल गया।
महिला सुरक्षा के क्षेत्र में भी CO अनुज चौधरी का योगदान उल्लेखनीय रहा।
उन्होंने ‘महिला हेल्प डेस्क’ को प्रभावी बनाया, कॉलेजों में जाकर जागरूकता अभियान चलाया, और मनचलों पर शिकंजा कसने के लिए ‘एंटी रोमियो स्क्वाड’ को मजबूत किया।
यही वजह थी कि महिलाओं में सुरक्षा की भावना बढ़ी।
CO चौधरी के ट्रांसफर को लेकर यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या यह किसी संगठित लॉबी का दबाव था?
हाल ही में उन्होंने जिले के एक बड़े प्रभावशाली कारोबारी पर शिकंजा कसा था, जिसके बाद से उन पर दबाव की चर्चाएं चल रही थीं।
हालांकि, प्रशासन इस तरह की बातों से इनकार करता रहा है।
इस तबादले को लेकर राजनैतिक दलों में भी प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
कुछ विपक्षी नेताओं ने सरकार पर आरोप लगाया है कि ईमानदार अधिकारियों को सिस्टम में टिकने नहीं दिया जाता।वहीं सत्तारूढ़ दल के नेताओं का कहना है कि प्रशासनिक फेरबदल एक सामान्य प्रक्रिया है और इसे ज़रूरत से ज़्यादा राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए।
संभल की जनता इस तबादले को दिल से स्वीकार नहीं कर पा रही है।
शहर के कई हिस्सों में स्थानीय लोगों ने मौन विरोध किया है।
वहीं छात्रों और युवाओं ने CO चौधरी की वापसी की मांग को लेकर जिला प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सिस्टम में वही अफसर टिकते हैं जो झुक जाएं?
क्या जनता की पसंद से ज्यादा अहम होता है राजनीतिक समीकरण?
CO अनुज चौधरी का ट्रांसफर अब केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि सिस्टम के भरोसे और ईमानदारी की कसौटी बन चुका है।
CO अनुज चौधरी भले ही अब संभल में तैनात न हों, लेकिन उनका प्रभाव और उनकी कार्यशैली जनता के ज़हन में हमेशा रहेगी।
उन्होंने जिस तरह से अपने सीमित संसाधनों में कानून का राज कायम किया, वो किसी मिशन से कम नहीं था।
अब देखना यह होगा कि क्या जनता की आवाज़ दोबारा उन्हें संभल लाने में सक्षम होगी, या ये तबादला एक मिसाल बनकर रह जाएगा।
अनुज चौधरी की कार्यशैली न केवल जनता के बीच लोकप्रिय रही, बल्कि उनके अधीनस्थ पुलिसकर्मियों ने भी उन्हें एक प्रेरक नेता के रूप में देखा।
उनकी लीडरशिप में थानों में काम करने का माहौल सुधरा, जवाबदेही बढ़ी और भ्रष्टाचार में कमी आई।
उन्होंने कई बार अपने मातहतों को यह सिखाया कि जनता से कैसे संवाद किया जाए और कैसे कानून को बिना दबाव के लागू किया जाए।
CO चौधरी का तबादला ऐसे वक्त में हुआ है जब संभल में कुछ संवेदनशील त्योहार और चुनावी तैयारियां सामने थीं।
कई लोगों का मानना है कि उनकी मौजूदगी इन मौकों पर काफ़ी मददगार होती।
अब जो नए अधिकारी आएंगे, उन्हें न सिर्फ पुराने मापदंडों पर खरा उतरना होगा, बल्कि जनता की अपेक्षाओं का बोझ भी उठाना होगा।
शहर के छात्र, सामाजिक संगठन और व्यापारी वर्ग अब एक स्वर में सवाल कर रहे हैं।
क्या एक ईमानदार अफसर का पुरस्कार उसका तबादला है?
यह भावना ही है जिसने CO अनुज चौधरी को केवल एक पुलिस अधिकारी नहीं, बल्कि जनता का प्रतिनिधि बना दिया था।
इस पूरे घटनाक्रम से ये बात साफ हो गई है कि जनता अब केवल विकास नहीं, जवाबदेही और पारदर्शिता भी चाहती है।
CO चौधरी ने यही दो चीजें अपने कार्यकाल में दीं — पारदर्शिता और न्याय।
उनकी गैरमौजूदगी से अब यह भी एक सवाल बन गया है कि क्या प्रशासनिक ढांचा उस आदर्श पर दोबारा खड़ा हो पाएगा?
अनुज चौधरी का तबादला भले ही एक आदेश से हुआ हो, लेकिन यह आदेश अब एक जनचर्चा बन चुका है।
उनकी विदाई केवल एक पद से नहीं, बल्कि एक भरोसे के प्रतीक की विदाई के रूप में देखी जा रही है।
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि अगला कदम क्या होगा और क्या यह आवाज़ें सत्ता के गलियारों तक पहुंच पाएंगी। क्या सच्चाई के साथ खड़ा होना अब सज़ा बन गया है?क्या ईमानदार अफसरों को सिस्टम में टिक पाना मुश्किल होता जा रहा है?इन सवालों का जवाब तो समय देगा, लेकिन फिलहाल, संभल की जनता एक ही बात कह रही है।हमें अनुज चौधरी फिर से चाहिए।