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पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच टकराव एक बार फिर उबाल पर है।

Editor : Anjali Mishra | 02 May, 2025

पंजाब-हरियाणा के बीच पानी को लेकर छिड़ गई है नई जंग?क्या BBMB और केंद्र इस विवाद का हल निकाल पाएंगे और सबसे बड़ा सवाल क्या आम जनता को मिलेगा उनकी जरूरत का पानी?

पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच टकराव एक बार फिर उबाल पर है।

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पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच टकराव एक बार फिर उबाल पर है।

हरियाणा ने पानी की माँग की, लेकिन पंजाब ने दो टूक कह दिया जब है ही नहीं, तो कैसे दें?

बीच में आया BBMB, मामला पहुँचा केंद्र सरकार तक।

एक ओर हरियाणा ने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की गुहार लगाई है, तो दूसरी ओर पंजाब के सीएम भगवंत मान साफ कह रहे हैं।मैंने कभी पंजाब के हिस्से का पानी देने को नहीं कहा, सैनी लोगों को भ्रमित न करें।पुलिस का कड़ा पहरा, वॉटर सोर्स की समीक्षा, और निकासी स्थलों का गहन निरीक्षण सभी संकेत दे रहे हैं कि जल-जंग अभी थमा नहीं है।

तो क्या सच में पंजाब-हरियाणा के बीच पानी को लेकर छिड़ गई है नई जंग?क्या BBMB और केंद्र इस विवाद का हल निकाल पाएंगे और सबसे बड़ा सवाल क्या आम जनता को मिलेगा उनकी जरूरत का पानी?

पानी पर पंजाब बनाम हरियाणा में घमासान मचा हुआ है।भाखड़ा डैम का पानी दो राज्यों की राजनीति और करोड़ों लोगों की प्यास।पंजाब और हरियाणा के बीच पानी की लड़ाई अब सड़कों से संसद तक पहुंच चुकी है।


आखिर विवाद की शुरुआत कैसे हुई?


पानी जो जीवन देता है, अब राजनीति का हथियार बन चुका है।हरियाणा मांग रहा है 8,500 क्यूसिक पानी।पंजाब दे रहा है सिर्फ 4,000 क्यूसिक पीने का पानी।पंजाब का कहना है।हम खुद संकट में हैं।बीबीएमबी के इंजीनियर ने कहा बिना पंजाब की इजाज़त, पानी नहीं छोड़ा जा सकता।और फिर, उन्हें हटा दिया गया।

ये सिर्फ पानी का मुद्दा नहीं है, यह संवैधानिक शक्तियों, राज्यों के अधिकार और आम जनता की ज़िंदगी से जुड़ा सवाल बन गया है।

पंजाब ने सख्ती दिखाते हुए गुरुवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद पहुंचे नंगल डैम।

जिस जगह से पानी हरियाणा को जाना था, वहां सख्त पहरा।

मंत्री हरजोत बैंस ने उस केंद्र पर ताला लगवा दिया।

पुलिस बल तैनात किया गया।

सरकार ने बुलाई सर्वदलीय बैठक और 5 मई को बुलाया गया विधानसभा का विशेष सत्र।


भगवंत मान ने कहा

जब हमारे पास ही नहीं है तो हम कैसे दें? ये मुद्दा भाजपा की राजनीति से खड़ा किया गया है।

पंजाब का कहना है कि डैमों का जलस्तर बेहद कम है।भाखड़ा 12 फीट, पौंग डैम 32 फीट और आरएसडी 14 फीट नीचे है।

भूजल लगातार गिर रहा है। ऐसे में किसानों की धान की बुआई से पहले पानी रोकना ज़रूरी है।

मुख्यमंत्री मान ने साफ किया। 21 मई तक अतिरिक्त पानी नहीं मिलेगा। फिर तय प्रक्रिया से पानी दिया जाएगा।


हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का दावा

मैंने 26 अप्रैल को मान साहब से बात की, उन्होंने भरोसा दिया था कि पानी छोड़ा जाएगा।”

अब वो अपने ही शब्दों से पीछे हट रहे हैं।


नायब सैनी का ये कहना कि मैंने पंजाब के हिस्से का पानी मांगा, झूठ है। हम सिर्फ हक मांग रहे हैं।हरियाणा कह रहा है।पीने के पानी का संकट है।छह जिलों में हालात बिगड़ रहे हैं।कैथल, जींद, हिसार, भिवानी, फतेहाबाद और सिरसा।टैंकर और ट्यूबवेल पर निर्भरता बढ़ी।अवैध कनेक्शन काटे जा रहे हैं।150 लीटर प्रति व्यक्ति के मानक से प्लानिंग की जा रही है।

यहां लोग सुबह से पानी के लिए लाइन में हैं।टैंकर आते हैं लेकिन काफी नहीं हैं।गांवों में हालात और खराब हैं।


सर्वदलीय बैठक में मौजूद रहे अरविंद केजरीवाल।केंद्र सरकार से अब आदेश की उम्मीद।बीबीएमबी ने मामले को केंद्र के हवाले किया।ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल इस मंत्रालय के मंत्री हैं और वे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भी।बीबीएमबी यानी भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड।केंद्र सरकार के अधीन काम करता है।हर साल 21 मई को तीन राज्यों में पानी का बंटवारा होता है।इस पूरे विवाद पर विपक्ष भी पीछे नहीं है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। वहीं इनेलो प्रमुख अभय चौटाला ने चेतावनी दी है कि अगर पंजाब पानी नहीं देता तो हरियाणा में आने वाले पंजाब के सभी रास्ते बंद कर दिए जाएंगे। ऐसे बयान से तनाव और बढ़ने की आशंका है। अब सवाल यह है कि क्या राजनीति की ये आग जनता की प्यास को और नहीं बढ़ाएगी?


जल संकट सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे खेत और किसान। हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों में धान की बुआई का सीजन करीब है। अगर सिंचाई का पानी नहीं मिला तो हजारों किसानों की फसलें बर्बाद हो सकती हैं। किसान यूनियनों ने सरकार से अपील की है कि इस विवाद का समाधान जल्द निकाला जाए वरना बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।


संविधान का अनुच्छेद 257 केंद्र को यह अधिकार देता है कि वह राज्यों को निर्देश दे सके, खासकर जब मामला दो राज्यों के बीच टकराव का हो। अगर प्रधानमंत्री चाहें तो पंजाब सरकार को आदेश दे सकते हैं कि वह पानी रोकने जैसी कोई बाधा न उत्पन्न करे। लेकिन यह कदम राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, क्योंकि इससे संघीय ढांचे पर सवाल उठ सकते हैं।


पंजाब सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि डैमों में पानी इसलिए कम है क्योंकि पिछले साल पहाड़ों में बर्फबारी और बारिश सामान्य से कम हुई थी। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इस बार भी मानसून कमजोर रहा तो हालात और बिगड़ सकते हैं। ऐसे में अब केवल जल प्रबंधन ही नहीं, बल्कि मौसम की मेहरबानी पर भी निर्भर करेगा दोनों राज्यों का जल भविष्य।


जल विवाद का समाधान केवल टकराव से नहीं, संवाद से ही निकलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ मिलकर एक स्थायी और तकनीकी समाधान निकालना चाहिए। साथ ही, एक संयुक्त जल आयोग या निगरानी तंत्र बनाया जाना चाहिए, जो समय रहते जल वितरण की स्थिति पर नजर रख सके। क्योंकि अंत में सवाल सिर्फ राजनीति का नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की प्यास का है।


भाखड़ा डैम से पानी की आपूर्ति में कमी का सीधा असर हरियाणा के छह जिलों कैथल, जींद, हिसार, भिवानी, फतेहाबाद और सिरसा पर पड़ा है। इन इलाकों में पीने के पानी की किल्लत इतनी बढ़ गई है कि प्रशासन को टैंकरों के जरिए सप्लाई करनी पड़ रही है। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और बच्चे कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। ये तस्वीरें बताती हैं कि विवाद सिर्फ राजनीतिक नहीं, मानवीय संकट भी है।


स्थिति की गंभीरता को देखते हुए हरियाणा सरकार ने सभी जिलों में वॉटर मैनेजमेंट टास्क फोर्स तैनात कर दी है। अवैध कनेक्शन काटे जा रहे हैं और नहरों के फ्लो पर नजर रखने के लिए विशेष मॉनिटरिंग यूनिट्स बनाई गई हैं। वहीं, शहरों में राशनिंग लागू करने और ट्यूबवेल-टैंकर के सहारे जल आपूर्ति सुनिश्चित करने की योजना पर काम किया जा रहा है। लेकिन ये सारे उपाय कब तक टिकेंगे, ये बड़ा सवाल है।


हरियाणा और पंजाब की आम जनता अब नेताओं से जवाब नहीं, समाधान चाहती है। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या जल जैसे जरूरी संसाधन को राजनीतिक हथियार बना देना सही है? दोनों राज्यों के नागरिकों की यही उम्मीद है कि पानी के इस संघर्ष को जल्द खत्म कर सभी को राहत मिले। क्योंकि जब पानी रुकता है, तो सिर्फ नदियां नहीं, रिश्ते भी सूखने लगते हैं।

पानी जीवन का आधार है, न कि राजनीति का अखाड़ा। ज़रूरत इस बात की है कि राज्य हितों से ऊपर उठकर, देश और जनता के हित में कोई रास्ता निकाला जाए,क्योंकि जब नल सूखते हैं, तब सियासत नहीं, समाधान बोलता है।

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