झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन
Editor : Shubham awasthi | 04 August, 2025
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन, जिन्हें उनके समर्थकों द्वारा 'दिशोम गुरुजी' के नाम से जाना जाता था, का 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे।

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उनके निधन की पुष्टि उनके पुत्र और वर्तमान झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर की, जहां उन्होंने लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूँ।" शिबू सोरेन का निधन न केवल झारखंड की राजनीति के लिए, बल्कि आदिवासी समुदाय और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक अपूरणीय क्षति है।
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार के रामगढ़ जिले (वर्तमान में झारखंड) के नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे, लेकिन जब शिबू सोरेन छोटे थे, तभी उनके पिता की हत्या साहूकारों द्वारा भेजे गए गुंडों ने कर दी थी। इस घटना ने उनके जीवन को गहरे रूप से प्रभावित किया और उन्हें आदिवासी अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी। कम उम्र में ही उन्होंने सामाजिक और आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी, जो बाद में उनके राजनीतिक जीवन का आधार बना।18 वर्ष की उम्र में, शिबू सोरेन ने संथाल नवयुवक संघ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके शोषण को रोकना था। उनकी यह पहल उनके नेतृत्व और सामाजिक जागरूकता का प्रतीक थी, जिसने उन्हें जल्द ही एक जननेता के रूप में स्थापित कर दिया।
शिबू सोरेन ने 1972 में बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता ए.के. रॉय और कुर्मी महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। यह संगठन झारखंड क्षेत्र के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर बनाया गया था, जो उस समय बिहार का हिस्सा था। JMM ने आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनकी जमीन की रक्षा, और क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर उनके नियंत्रण की वकालत की।4 फरवरी 1972 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में आयोजित एक रैली में JMM की नींव रखी गई, जो झारखंड अलग राज्य आंदोलन का एक महत्वपूर्ण क्षण था। शिबू सोरेन ने इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी अगुवाई में JMM ने आदिवासियों, मूलवासियों, और किसानों के हितों के लिए संघर्ष किया, विशेष रूप से जमींदारों और साहूकारों द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ।उनके नेतृत्व में झारखंड आंदोलन ने 1980 और 1990 के दशक में जोर पकड़ा। शिबू सोरेन की मेहनत और दृढ़ निश्चय का परिणाम था कि 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। इस उपलब्धि ने उन्हें झारखंड के लोगों के बीच 'दिशोम गुरु' के रूप में अमर कर दिया।
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर अत्यंत उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। हालांकि, 1980 में उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से जीत हासिल की और इसके बाद 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009, और 2014 में भी इस सीट से सांसद चुने गए। दुमका उनकी राजनीतिक गढ़ बन गया
हालांकि 2019 में उन्हें भाजपा के नलिन सोरेन के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा।मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकालशिबू सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार कार्य किया, हालांकि उनका कोई भी कार्यकाल पूर्ण नहीं हो सका:पहला कार्यकाल (2 मार्च 2005 - 11 मार्च 2005): यह कार्यकाल केवल 10 दिनों का रहा। शिबू सोरेन को विधानसभा में बहुमत साबित करने में असफलता के कारण इस्तीफा देना पड़ा।
दूसरा कार्यकाल (27 अगस्त 2008 - 12 जनवरी 2009): यह कार्यकाल चार महीने और 22 दिन तक चला। इस दौरान उन्होंने आदिवासी कल्याण और विकास पर ध्यान केंद्रित किया।
तीसरा कार्यकाल (30 दिसंबर 2009 - 31 मई 2010): इस कार्यकाल में भी उनकी सरकार को गठबंधन की राजनीति के कारण स्थिरता की कमी का सामना करना पड़ा।
शिबू सोरेन ने 2004 में मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में कार्य किया। हालांकि, 1974 के चिरुडीह मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी होने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। बाद में जमानत पर रिहा होने के बाद उन्हें फिर से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, लेकिन 2006 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें फिर से इस्तीफा देना पड़ा। यह पहला मौका था जब किसी केंद्रीय मंत्री को हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। हालांकि, बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया
शिबू सोरेन का प्रभाव केवल झारखंड तक सीमित नहीं था। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भी आदिवासी अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए आवाज उठाई। वह 2002 में कुछ समय के लिए राज्यसभा के सदस्य रहे और केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में तीन बार (2004 और 2006 में) कार्य किया। उनकी राजनीतिक रणनीति और गठबंधन की समझ ने JMM को झारखंड की राजनीति में एक मजबूत ताकत बनाए रखा।
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन विवादों से भी घिरा रहा। 1974 के चिरुडीह मामले और 1994 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में उनकी संलिप्तता के आरोप लगे। 2006 में दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें शशिनाथ झा मामले में दोषी ठहराया, लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए उन्हें बरी कर दिया। इन विवादों के बावजूद, शिबू सोरेन का जनाधार कभी कम नहीं हुआ, और उनके समर्थकों ने उन्हें हमेशा एक आदिवासी नायक के रूप में देखा।