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स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा लोक मोर्चा का गठन और मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी

Editor : Shubham awasthi | 12 June, 2025

इस गठबंधन में नौ छोटे-बड़े दलों को शामिल किया गया है, और मौर्य ने खुद को 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है।

स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा लोक मोर्चा का गठन और मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। पूर्व कैबिनेट मंत्री और विभिन्न राजनीतिक दलों में अपनी पहचान बना चुके स्वामी प्रसाद मौर्य ने गुरुवार को एक नए राजनीतिक गठबंधन ‘लोक मोर्चा’ के गठन की घोषणा की। इस गठबंधन में नौ छोटे-बड़े दलों का समावेश है, और मौर्य ने खुद को 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। यह कदम न केवल प्रदेश की सियासत में एक नया विकल्प पेश करता है, बल्कि मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है

लोक मोर्चा की रणनीति में स्थानीय स्तर पर संगठन को मजबूत करना और सामाजिक न्याय के मुद्दे को केंद्र में रखना शामिल है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि गठबंधन का पहला लक्ष्य आगामी पंचायत चुनावों में अपनी ताकत दिखाना है। पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच हैं, क्योंकि ये स्थानीय स्तर पर उनकी लोकप्रियता और संगठनात्मक क्षमता का आकलन करते हैं। मौर्य ने कहा, “हम पंचायत चुनावों में हर जिले, हर ब्लॉक और हर गांव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे। यह हमारी ताकत का पहला प्रदर्शन होगा।”

2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर मौर्य ने बड़े दावे किए। उन्होंने कहा कि लोक मोर्चा न केवल सत्ता में आएगा, बल्कि वह एक ऐसी सरकार बनाएगा जो समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व दे। गठबंधन की रणनीति में युवाओं, महिलाओं और किसानों को विशेष रूप से जोड़ने पर जोर है। मौर्य ने बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याओं को उठाते हुए मौजूदा सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “प्रदेश की जनता त्रस्त है। नौजवानों को रोजगार नहीं, किसानों को उचित मूल्य नहीं, और महिलाओं को सुरक्षा नहीं। हम इन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे। इस गठबंधन का सिद्धांत "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" सामाजिक न्याय की मांग को और स्पष्ट करता है। यह नारा समाजवादी पार्टी के 'पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक' (पीडीए) फॉर्मूले से प्रेरित प्रतीत होता है, लेकिन मौर्य ने इसे और व्यापक और समावेशी बनाया है। गठबंधन का लक्ष्य उन समुदायों को एकजुट करना है जो अब तक मुख्यधारा की राजनीति में अपेक्षित प्रतिनिधित्व से वंचित रहे हैं।

लोक मोर्चा के गठन की घोषणा के साथ ही इसकी चुनौतियां भी सामने आने लगी हैं। सबसे पहली चुनौती है संगठनात्मक ढांचे का निर्माण करना। मौर्य के पास अनुभव तो है, लेकिन एक नए गठबंधन को पूरे प्रदेश में जमीनी स्तर पर खड़ा करना आसान नहीं है। इसके लिए न केवल संसाधनों की जरूरत है, बल्कि कार्यकर्ताओं का एक मजबूत नेटवर्क। भी चाहिए।


उत्तर प्रदेश में 2027 का विधानसभा चुनाव पहले से ही एक रोचक और कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है। वर्तमान में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की योगी आदित्यनाथ सरकार सत्ता में है, और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने दावा किया है कि भाजपा 2027 में 300 से अधिक सीटें जीतेगी। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी (सपा) भी अपने पीडीए फॉर्मूले के साथ मजबूती से मैदान में है। ऐसे में, स्वामी प्रसाद मौर्य का लोक मोर्चा एक तीसरे विकल्प के रूप में उभर सकता है, जो विशेष रूप से उन मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है जो भाजपा और सपा के मौजूदा शासन से असंतुष्ट हैं।


लोक मोर्चा का गठन उन छोटे दलों और समुदायों को एक मंच प्रदान करता है जो अकेले चुनावी मैदान में प्रभावी नहीं हो पाते। नौ दलों का यह गठबंधन, यदि संगठित और प्रभावी ढंग से काम करता है, तो यह मतों के ध्रुवीकरण को प्रभावित कर सकता है। खासकर, पिछड़े और दलित वर्गों के बीच मौर्य की स्वीकार्यता और उनकी सामाजिक न्याय की छवि गठबंधन को एक मजबूत आधार प्रदान कर सकती है।


लेकिन इसके बावजूद, लोक मोर्चा के लिए कई अवसर भी मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के मुद्दे हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं, और मौर्य का गठबंधन इन मुद्दों को केंद्र में लाकर मतदाताओं का ध्यान आकर्षित कर सकता है। इसके अलावा, यदि यह गठबंधन पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करता है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनाव में एक मजबूत आधार तैयार कर सकता है