तेजस्वी का तीखा वार, 65% आरक्षण पर NDA की चुप्पी क्यों है संदिग्ध?
Editor : Anjali Mishra | 09 June, 2025
तेजस्वी ने उठाई 9वीं अनुसूची में आरक्षण की माँग

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क्या बिहार में सामाजिक न्याय की नई जंग छिड़ गई है?
तेजस्वी यादव ने उठाया बड़ा सवाल 65% आरक्षण की मांग पर क्यों खामोश हैं नीतीश, चिराग और मांझी? एक पत्र से शुरू हुई ये बहस अब बनती जा रही है सियासी भूचाल! क्या सत्ता की साझेदारी सामाजिक अधिकारों से बड़ी हो गई है?
बिहार की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण को लेकर तूफान खड़ा हो गया है। विपक्ष के नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सीधे तौर पर घेरते हुए पूछा है “क्या नीतीश जी ने मेरे पत्र का जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि उनके पास कोई जवाब नहीं है?” तेजस्वी यादव ने आरक्षण सीमा को 65 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग को लेकर 4 जून को मुख्यमंत्री को एक औपचारिक पत्र लिखा था, जिसकी कॉपी उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी साझा की।
तेजस्वी ने अपनी पोस्ट में नीतीश कुमार की चुप्पी पर तीखा तंज कसा और सवाल उठाया कि क्या मुख्यमंत्री जानबूझकर पत्रों को नजरअंदाज करते हैं या फिर उन्हें ऐसे पत्र दिखाए ही नहीं जाते। उन्होंने लिखा, “क्या यह मुख्यमंत्री की आदत बन गई है कि वे जनहित के पत्रों का जवाब नहीं देते?” साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सामाजिक न्याय की बातें करने वाले एनडीए के नेता सिर्फ़ सत्ता के लिए कुर्सी से चिपके हैं।
आरक्षण सीमा बढ़ाने के मुद्दे को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने को लेकर भी तेजस्वी ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि आखिर क्यों सामाजिक न्याय के दम पर राजनीति करने वाले एनडीए के सहयोगी चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं? क्या वाकई ये लोग सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं या फिर सिर्फ़ मौकापरस्त?
तेजस्वी ने अपनी बात को और तीखा करते हुए लिखा जिन लोगों की वजह से मोदी सरकार चल रही है, वो लोग इतनी छोटी सी मांग भी प्रधानमंत्री से पूरी नहीं करवा पा रहे हैं। क्या यह गठबंधन में रहने लायक स्थिति है?” उन्होंने इसे ‘सामाजिक वर्गों के हक की सीधी हकमारी’ बताया।
उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने जब आरक्षण को 65 फीसदी तक बढ़ाया था, तो वह सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। लेकिन अब जब केंद्र की सहमति और संवैधानिक समर्थन की ज़रूरत है, तो एनडीए के नेता खामोश हैं। उन्होंने पूछा क्या सत्ता का लालच इतना बड़ा है कि अपने ही समाज के अधिकारों को कुर्बान कर दिया जाए?”
तेजस्वी ने यह भी जोड़ा कि आरक्षण सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्गों की सामाजिक समानता की गारंटी है। उन्होंने कहा कि संविधान की 9वीं अनुसूची में आरक्षण बढ़ोतरी को शामिल कर देना एक व्यवहारिक और न्यायपूर्ण फैसला होगा, लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति की ज़रूरत है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा तेजस्वी ने केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, हम पार्टी प्रमुख जीतनराम मांझी और आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा को भी सीधे-सीधे आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि “जो दल खुद को दलित-पिछड़ा हितैषी बताते हैं, उन्हें आज खुलकर बोलना चाहिए। अगर वे चुप हैं, तो उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।”
तेजस्वी ने साफ कहा कि राजनीति का मकसद सिर्फ़ सत्ता में बने रहना नहीं होता, बल्कि समाज के वंचित तबकों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना भी होता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इन नेताओं ने अब भी चुप्पी नहीं तोड़ी, तो जनता उन्हें जवाब देना जानती है।तेजस्वी यादव की यह मुहिम केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं बल्कि बिहार की सामाजिक संरचना को प्रभावित करने वाला गंभीर मुद्दा बन चुकी है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अगर राज्य में जातीय जनगणना हो चुकी है और आंकड़े सामने हैं, तो उसी के आधार पर सामाजिक न्याय की दिशा में ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे? उन्होंने तंज कसते हुए पूछा कि क्या यह आंकड़े केवल कागज़ी घोषणाओं और चुनावी वादों के लिए इकट्ठा किए गए थे?
तेजस्वी ने यह भी आरोप लगाया कि एनडीए सरकार सिर्फ़ ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारों तक सीमित है, जबकि ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। उन्होंने कहा कि “जब आरक्षण की बात आती है, तो सरकारें आंकड़ों की आड़ में भागती हैं। लेकिन जब वही आंकड़े वोटबैंक के काम आते हैं, तो हर दल ज़ोर-शोर से प्रचार करता है।” उन्होंने इसे एक “राजनीतिक धोखा” करार दिया।
अपने बयान के अंत में तेजस्वी ने यह संदेश भी दिया कि आने वाले समय में अगर यह मांग पूरी नहीं होती है, तो वह इस मुद्दे को लेकर बिहार के गांव-गांव और शहर-शहर में अभियान चलाएंगे। उन्होंने युवाओं, छात्रों और पिछड़े वर्ग के लोगों से आह्वान किया कि वे सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक इस अधिकार की लड़ाई को तेज करें। तेजस्वी का यह हमला न केवल नीतीश कुमार बल्कि पूरे एनडीए पर गहरा राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।अंत में तेजस्वी ने जनता से अपील करते हुए कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई को जिंदा रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। “जो लोग आपके अधिकारों की बात नहीं कर सकते, उनसे उम्मीद करना भी बेकार है। समय आ गया है कि आप खुद तय करें कि आपकी लड़ाई कौन लड़ रहा है और कौन आपको सिर्फ़ वोट बैंक समझता है।”