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जातिगत जनगणना: महत्व, आवश्यकता और राजनीतिक हलचल !

Editor : Shubham awasthi | 01 May, 2025

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में जाति सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। जातिगत जनगणना का सीधा अर्थ है देश की विभिन्न जातियों की जनसंख्या के स्पष्ट और व्यवस्थित आंकड़े एकत्र करना।

जातिगत जनगणना: महत्व, आवश्यकता और राजनीतिक हलचल !

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यह प्रक्रिया न केवल सामाजिक-आर्थिक नीतियों को आकार देने में मदद करती है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है, जिसने देश की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी हैं। 

जातिगत जनगणना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें देश की प्रत्येक जाति की जनसंख्या, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा स्तर, रोजगार और अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं। भारत में हर दस साल में होने वाली सामान्य जनगणना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना तो की जाती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य जातियों के लिए व्यापक आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया नियमित रूप से नहीं अपनाई गई। स्वतंत्र भारत में 1931 की जनगणना के बाद जातिगत आंकड़े व्यवस्थित रूप से एकत्र नहीं किए गए, जिसके कारण OBC और अन्य जातियों की वास्तविक जनसंख्या का अनुमान पुराने आंकड़ों या अनुमानों पर आधारित रहा है।

2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) कराई थी, लेकिन इसके आंकड़े पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं किए गए। केंद्र सरकार का तर्क था कि इसमें कई खामियां थीं, जिसके कारण डेटा विश्वसनीय नहीं था। अब मोदी सरकार के हालिया फैसले ने जातिगत जनगणना को मुख्य जनगणना का हिस्सा बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे सभी जातियों, विशेष रूप से OBC, की जनसंख्या और स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलने की उम्मीद है।


जातिगत जनगणना की आवश्यकता क्यों?

जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से उठ रही थी, खासकर OBC समुदाय और सामाजिक न्याय की वकालत करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा। इसके पीछे कई ठोस कारण हैं:

सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व: भारत में जाति आधारित आरक्षण नीतियों का महत्वपूर्ण स्थान है। मंडल आयोग (1979) ने OBC की जनसंख्या को 52% अनुमानित किया था, जिसके आधार पर 27% आरक्षण लागू किया गया। हालांकि, यह अनुमान 1931 की जनगणना पर आधारित था। सटीक और अद्यतन आंकड़ों के अभाव में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह आरक्षण वास्तविक जनसंख्या के अनुपात में है। जातिगत जनगणना से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि प्रत्येक समुदाय को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व और संसाधन मिलें।


नीति निर्माण में सहायता: सटीक आंकड़े सरकार को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी जाति समूह की शिक्षा या आर्थिक स्थिति खराब है, तो उनके लिए लक्षित योजनाएं बनाई जा सकती हैं। बिना आंकड़ों के नीतियां सामान्य और कम प्रभावी हो सकती हैं।


राजनीतिक भागीदारी: विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, RJD, JDU और समाजवादी पार्टी, का तर्क है कि OBC और अन्य पिछड़े समुदायों की वास्तविक जनसंख्या का पता लगने से उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी। बिहार में 2023 में जारी जातिगत सर्वे के आंकड़ों ने दिखाया कि OBC, SC और ST मिलकर 84% आबादी हैं, जिसने आरक्षण और प्रतिनिधित्व की मांग को और तेज कर दिया।


सामाजिक असमानता को दूर करना: जातिगत जनगणना से यह पता चल सकेगा कि देश के संसाधन, धन और अवसर किस समुदाय के पास कितने हैं। उदाहरण के लिए, राहुल गांधी ने अक्सर कहा है कि जनगणना से यह स्पष्ट होगा कि OBC, दलित और आदिवासी समुदायों की संस्थानों और कॉरपोरेट क्षेत्र में कितनी भागीदारी है। इससे असमानता को कम करने के लिए नीतियां बनाई जा सकती हैं

चुनावी रणनीति और सामाजिक गठजोड़: भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण कारक है। OBC देश की सबसे बड़ी जनसांख्यिकीय शक्ति माना जाता है, और उनकी जनसंख्या के सटीक आंकड़े राजनीतिक दलों को अपने गठजोड़ और नीतियां बनाने में मदद करेंगे।


जातिगत जनगणना और राजनीतिक हलचल

मोदी सरकार के जातिगत जनगणना के फैसले ने राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इसे अपनी जीत के रूप में पेश कर रहा है। राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता लंबे समय से इस मुद्दे को उठा रहे थे, और उनका दावा है कि सरकार ने उनके दबाव के कारण यह फैसला लिया। कांग्रेस ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बताया है, और कहा है कि यह "जितनी आबादी, उतना हक" के सिद्धांत को लागू करने का पहला कदम है।

दूसरी ओर, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। बीजेपी ने इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि यह सामाजिक समावेशन और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ने यह फैसला विपक्ष के नैरेटिव को कमजोर करने और OBC वोट बैंक को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए लिया है।


इसके बावजूद, इस मुद्दे पर कई चुनौतियां और चिंताएं भी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जातिगत जनगणना सामाजिक विभाजन को बढ़ावा दे सकती है और जातिगत ध्रुवीकरण को और गहरा कर सकती है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट के 50% आरक्षण की सीमा के नियम के कारण, यदि OBC की जनसंख्या अपेक्षा से अधिक निकलती है, तो आरक्षण बढ़ाने की मांग एक जटिल मुद्दा बन सकता है।


बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना के ऐलान के क्या हैं मायने? 


जाति जनगणना कराने के ऐलान से विपक्ष को बड़ा झटका लगा है. क्योंकि राहुल गांधी इस मुद्दे को मिशन मोड की तरह उठाते रहे हैं. समझिए बिहार चुनाव में इसका क्या असर होगा। केंद्र सरकार के इस निर्णय से विपक्ष को बड़ा झटका लगा है. क्योंकि राहुल गांधी इस मुद्दे को मिशन मोड की तरह उठाते रहे हैं. दूसरी ओर केंद्र सरकार ने ऐसे समय में इसका ऐलान किया है जब बिहार में इसी साल (2025) विधानसभा का चुनाव होना है

अब बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिए बड़ा कांटा भी साफ हो गया है. कुल मिलाकर इसका सीधा-सीधा फायदा एनडीए को होने वाला है. क्योंकि निश्चित तौर पर मांगने वाले से ज्यादा देने वाले को लोग पसंद करते हैं. विपक्ष चुनाव में जाकर यह बात जरूर कहेगा कि हमने मांग की तो पूरी हुई, लेकिन बीजेपी और जेडीयू के नेता इस बात को जरूर कहेंगे कि हमने देने का काम किया है. तो इसका फायदा सीधे तौर पर एनडीए को होगा.