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मऊ सदर सीट उपचुनाव 2025: सुभासपा बनाम भाजपा

Editor : Shubham awasthi | 02 June, 2025

उत्तर प्रदेश की मऊ सदर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव राजनीतिक हलकों में चर्चा का केंद्र बन गया है। यह सीट तब रिक्त हुई जब सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) के विधायक अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता हेट स्पीच मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद निरस्त कर दी गई।

मऊ सदर सीट उपचुनाव 2025: सुभासपा बनाम भाजपा

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अब इस सीट पर उपचुनाव की घोषणा के साथ ही सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल दो दलों—भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सुभासपा—के बीच इस सीट को लेकर तनातनी शुरू हो गई है। दोनों ही दल इस सीट पर अपना दावा ठोक रहे हैं, और दोनों के पास अपने-अपने तर्क हैं मऊ सदर विधानसभा सीट पूर्वांचल की उन सीटों में से एक है, जो अपनी जटिल सामाजिक संरचना और राजनीतिक गतिशीलता के लिए जानी जाती है। यह सीट पिछले 27 वर्षों से मुख्तार अंसारी और उनके परिवार के प्रभाव में रही है। मुख्तार अंसारी, एक प्रभावशाली और विवादास्पद राजनेता, और उनके बेटे अब्बास अंसारी ने इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी। 2022 के विधानसभा चुनाव में अब्बास अंसारी ने सुभासपा के टिकट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन में यह सीट जीती थी। उस समय सुभासपा और सपा का गठबंधन था, जिसने पूर्वांचल की कई सीटों पर सपा को मजबूती दी थी।


हालांकि, अब्बास अंसारी की विधायकी रद्द होने के बाद स्थिति बदल चुकी है। अब सुभासपा का गठबंधन सपा के बजाय भाजपा के साथ है, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है। यह बदलाव मऊ सदर सीट के उपचुनाव को और अधिक रोचक और जटिल बनाता है। सुभासपा के नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने इस सीट पर अपनी पार्टी का दावा ठोका है, जबकि भाजपा भी इस सीट को अपने कब्जे में लेने की कोशिश में है।

सुभासपा, जिसका नेतृत्व ओम प्रकाश राजभर कर रहे हैं, मऊ सदर सीट को अपनी परंपरागत सीट मानती है। उनके दावे के पीछे निम्नलिखित तर्क हैं:

2022 में जीत सुभासपा के खाते में

2022 के विधानसभा चुनाव में अब्बास अंसारी ने सुभासपा के टिकट पर मऊ सदर सीट जीती थी। यह जीत सुभासपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि इसने पार्टी को पूर्वांचल में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करने का मौका दिया। ओम प्रकाश राजभर का तर्क है कि चूंकि यह सीट सुभासपा के कोटे से जीती गई थी, इसलिए उपचुनाव में भी इस सीट पर सुभासपा का हक है।

मऊ जिले में राजभर समुदाय की आबादी महत्वपूर्ण है, और सुभासपा इस समुदाय की सबसे बड़ी राजनीतिक आवाज मानी जाती है। ओम प्रकाश राजभर ने बार-बार दावा किया है कि राजभर समुदाय का समर्थन उनकी पार्टी के साथ है, और मऊ सदर सीट पर उनकी जीत की संभावना सबसे अधिक है।

अब्बास अंसारी का सुभासपा से जुड़ाव

अब्बास अंसारी सुभासपा के टिकट पर विधायक बने थे, और उनकी सदस्यता रद्द होने के बाद भी सुभासपा का दावा है कि यह सीट उनकी है। राजभर ने यह भी कहा है कि अब्बास अंसारी उनके "बेटे" की तरह हैं, और वह इस सीट को सुभासपा के लिए बचाए रखना चाहते हैं।


गठबंधन में सुभासपा की स्थिति

सुभासपा वर्तमान में एनडीए का हिस्सा है, और ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। उनका तर्क है कि गठबंधन धर्म के तहत मऊ सदर सीट सुभासपा को दी जानी चाहिए, क्योंकि यह उनकी पार्टी की परंपरागत सीट है।


मऊ में भाजपा की बढ़ती ताकत

मऊ सदर सीट पर भले ही भाजपा का अब तक कोई प्रत्यक्ष जीत का रिकॉर्ड न हो, लेकिन हाल के वर्षों में पार्टी ने पूर्वांचल में अपनी पैठ मजबूत की है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने मऊ जिले की अन्य सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। पार्टी का मानना है कि वह इस उपचुनाव में मऊ सदर सीट पर सेंध लगा सकती है।


सुभासपा के साथ गठबंधन की ताकत

भाजपा का तर्क है कि सुभासपा के साथ गठबंधन होने के बावजूद, यह सीट एनडीए के लिए महत्वपूर्ण है, और भाजपा के पास इसे जीतने की बेहतर रणनीति और संसाधन हैं। कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि शक्ति सिंह जैसे मजबूत उम्मीदवार इस सीट पर पार्टी की जीत सुनिश्चित कर सकते हैं।

भाजपा का तर्क है कि सुभासपा के साथ गठबंधन होने के बावजूद, यह सीट एनडीए के लिए महत्वपूर्ण है, और भाजपा के पास इसे जीतने की बेहतर रणनीति और संसाधन हैं। कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि शक्ति सिंह जैसे मजबूत उम्मीदवार इस सीट पर पार्टी की जीत सुनिश्चित कर सकते हैं।


मुख्तार अंसारी के प्रभाव को कम करने की रणनीति

मऊ सदर सीट पर मुख्तार अंसारी और उनके परिवार का प्रभाव लंबे समय से रहा है। भाजपा इसे एक अवसर के रूप में देख रही है, जहां वह इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है और अंसारी परिवार के प्रभाव को कम कर सकती है। पार्टी का मानना है कि उसकी कानून-व्यवस्था और विकास की छवि इस सीट पर मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है।


राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की ताकत

केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते, भाजपा के पास संसाधनों, संगठनात्मक ढांचे, और बड़े नेताओं का समर्थन है। वह इस उपचुनाव को एक बड़े मंच के रूप में देख रही है, जहां वह अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकती है।

मऊ सदर सीट की सामाजिक संरचना इस उपचुनाव को और अधिक जटिल बनाती है। इस क्षेत्र में राजभर, यादव, मुस्लिम, और दलित समुदायों की महत्वपूर्ण आबादी है। इसके अलावा, गैर-यादव ओबीसी और सामान्य वर्ग के मतदाता भी इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

राजभर समुदाय: सुभासपा का आधार वोट बैंक राजभर समुदाय है, जो मऊ में एक महत्वपूर्ण मतदाता समूह है। ओम प्रकाश राजभर इस समुदाय को एकजुट करने में माहिर हैं, और उनकी रणनीति इस समुदाय के वोटों को सुभासपा की ओर मोड़ने पर केंद्रित होगी।



मुस्लिम मतदाता: मऊ में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी काफी है, और अब्बास अंसारी की जीत में इस समुदाय का बड़ा योगदान था। अब सवाल यह है कि क्या सुभासपा इस वोट बैंक को अपने पक्ष में रख पाएगी, खासकर तब जब उसका गठबंधन सपा के बजाय भाजपा के साथ है।


यादव और अन्य ओबीसी: यादव मतदाता परंपरागत रूप से सपा के साथ रहे हैं, लेकिन सुभासपा और भाजपा दोनों ही गैर-यादव ओबीसी वोटों को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेंगे।


दलित और सामान्य वर्ग: दलित मतदाता और सामान्य वर्ग के मतदाता भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, खासकर अगर पार्टी विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दों को उठाती है।