दिल्ली चुनाव: कहां चूक गए केजरीवाल, आम आदमी पार्टी की हार के 5 प्रमुख कारण
Editor : Manager User | 08 February, 2025
पहली वजह यह है कि भीतरघात केजरीवाल को ले डूबा। विधानसभा चुनावों से ठीक पहले जिस तरह से आम आदमी पार्टी के विधायकों ने इस्तीफा दिया। पार्टी के प्रमुख नेताओं कैलाश गहलोत, राज कुमार आनंद ने जिस तरह से पार्टी को छोड़ा।

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कभी दिल्ली के मसीहा बनकर उभरे अरविंद केजरीवाल आखिर इस बार कहां चूक गए। पार्टी तो चुनाव हारी ही केजरीवाल अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। तो कहां चूक हुई केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से? कैसे छिटक गई दिल्ली की सत्ता उनके हाथ से? चलिए मैं आपको उन 5 प्रमुख वजहों के बारे में बताता हूं जिस कारण दिल्ली की सत्ता केजरीवाल दूर...बहुत दूर हो गए। नमस्कार मैं हूं लक्ष्मी शंकर मिश्र और आप देखना शुरू कर दिए हैं 24 अड्डा।
दिल्ली में 27 साल बाद कमल खिल चुका है। आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई है. सबसे करारी हार अरविंद केजरीवाल की हुई है। अपनी सीट भी हारे और पार्टी भी हारी। आखिर क्यों, दिल्ली की जनता ने केजरीवाल पर भरोसा क्यों नहीं दिखाया? चलिए विश्लेषण करते हैं।
पहली वजह यह है कि भीतरघात केजरीवाल को ले डूबा। विधानसभा चुनावों से ठीक पहले जिस तरह से आम आदमी पार्टी के विधायकों ने इस्तीफा दिया। पार्टी के प्रमुख नेताओं कैलाश गहलोत, राज कुमार आनंद ने जिस तरह से पार्टी को छोड़ा। केजरीवाल की सबसे करीबी रही राज्यसभा सांसद और दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने जिस तरह से पार्टी और केजरीवाल के पीए पर बदसलूकी का आरोप लगाया था, उसने भी आम आदमी पार्टी की छवि खराब की।
दूसरी वजह है भ्रष्टाचार का आरोप। सीएम अरविंद केजरीवाल उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जिस तरह से शराब घोटाले में फंसा। केजरीवाल पर शीशमहल तैयार करने का जो आरोप लगा, उसमें पार्टी बुरी तरह से घिर गई। केजरीवाल का जेल जाना, सिसोदिया का लंबे समय तक जेल में रहना ये ऐसे कारण रहे जिसने केजरीवाल और उनकी पार्टी के प्रति लोगों में अविश्वास पैदा किया। लोगों को लगा कि स्वच्छ राजनीति का दावा करके सत्ता में आई पार्टी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई है। इसे लोगों ने विश्वासघात के रूप में लिया और खामियाजा यह हुआ कि पार्टी के साथ केजरीवाल, सिसोदिया सहित पार्टी के सभी दिग्गज नेता चुनाव हार गए। सिर्फ आतिशी अपना सीट बचा पाई हैं। अरविंद केजरीवाल की जो सबसे बड़ी ताकत थी वह सबसे बड़ी कमजोरी में बदल गई। अरविंद केजरीवाल जिस बात को डंके की चोट पर कहते थे कि उनकी ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं खड़े कर सकता। शराब घोटाला, शीशमहल ने सवाल खड़े किए और उसका परिणाम अब सामने है।
यमुना को साफ करने का मुद्दा इस बार बीजेपी ने जबरदस्त तरीके से भुनाया। यमुना को साफ करने के लिए केजरीवाल ने जो वादे किए और धरातल पर जो रहा, उसने लोगों में आम आदमी पार्टी के प्रति अविश्वास पैदा किया। दिल्ली में गंदे पानी की सप्लाई होती रही लोग शिकायत करते रहे लेकिन सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे पाई और इस कारण पूरी पार्टी चुनाव हार गई।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलग-अलग चुनाव लड़ने से भी नुकसान हुआ। अगर दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ती तो शायद आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए स्थितियां कुछ बेहतर होतीं।
दिल्ली की जनता के सामने अरविंद केजरीवाल ने बार-बार कहा कि हमें केंद्र सरकार काम नहीं करने दे रही है। कहीं न कहीं यह संदेश गया कि अगर आम आदमी पार्टी जीत भी जाती है तो भी विकास के काम शायद न हो पाएं। ऐसे में जनता डबल इंजन सरकार की तरफ गई ताकि दिल्ली का विकास न रुके और यहीं पर केजरीवाल और उनकी पार्टी की हार हो गई।
बीजेपी की आक्रामक चुनावी नीति और अरविंद केजरीवाल के सिर्फ आरोपों की राजनीति ने कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ी कीं और उसका लाभ बीजेपी को मिला।
उधर, केजरीवाल के गुरु अन्ना हजारे ने भी इस हार पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। केजरीवाल पर सवाल उठाते हुए अन्ना हजारे ने "वह (शराब और पैसे में उलझ गए। इससे उनकी छवि खराब हुई और उन्हें चुनाव में कम वोट मिले। लोगों ने देखा कि वे चरित्र की बात करते हैं लेकिन शराब में लिप्त रहते हैं। राजनीति में आरोप लगते रहते हैं। किसी को यह साबित करना पड़ता है कि वह दोषी नहीं है। सच सच ही रहेगा।"