बिहार में बड़े भाई की भूमिका में क्यों नहीं आ पा रही बीजेपी?
Editor : Manager User | 26 February, 2025
दूसरी बड़ी वजह है कि नीतीश कुमार के लिए सभी रास्ते खुले होना। अगर बीजेपी एक बार भी उन्हें नजअंदाज करने की कोशिश करेगी तो वे लालू यादव की पार्टी आरजेडी की तरफ कभी भी जा सकते हैं यह बीजेपी भी जानती है। पहले भी नीतीश ऐसा कर चुके हैं। नीतीश कुमार की कुर्सी पर जब भी आंच आती है वे पलट जाते हैं।

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बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी के लिए अभी भी क्यों हैं जरूरी? क्यों विधानसभा चुनाव के लिए जेडीयू को बड़ा भाई मानने की है बीजेपी के सामने मजबूरी? नीतीश को लाडला सीएम बताने के पीछे क्या है पीएम मोदी की सियासत? चुनावों से पहले बिहार में बीजेपी की सियासत को समझना चाहते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। अभी कुछ समय पहले तक यह दावा किया जा रहा था कि महाराष्ट्र की तर्ज पर इस चुनाव में बीजेपी बिहार में भी बड़े भाई की भूमिका में आएगी। लेकिन पीएम मोदी ने अब सीएम नीतीश कुमार को लाड़ला मुख्यमंत्री बताकर इन सभी अटकलों पर विराम दे दिया है। अब ये तो तय हो गया है कि बीजेपी फिलहाल यहां नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। तो सीएम नीतीश कुमार बीजेपी के लिए मजबूरी क्यों हैं? महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में मिली जीत से भी क्या बीजेपी को इतना आत्मविश्वास नहीं हो रहा है कि वो बिहार में अकेले चुनाव लड़कर अकेले दम पर सरकार बना सकती है तो इसके पीछे क्या वजह है चलिए एक-एक करके इन सभी को समझते हैं।
सबसे पहले यह जानते हैं कि आखिर जेडीयू और नीतीश कुमार को बड़ा भाई मानने की मजबूरी क्यों है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पर उसे सिर्फ 43 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. भाजपा 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन उसे ७४ सीटें मिली थीं। इसका मतलब है कि बिहार में बीजेपी तो पहले से ही बड़े भाई की भूमिका में है लेकिन फिर भी जेडीयू और नीतीश कुमार को बड़ा मानने की उसके सामने मजबूरी है। बिहार की राजनीति दूसरे प्रदेशों से अलग है। यही वजह है कि अन्य प्रदेशों में दांव खेलने को हमेशा तैयार रहने वाली बीजेपी बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का दांव नहीं खेल पाती है और ना ही नीतीश कुमार को हाशिए पर कर पाती है।
इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि बिहार में बीजेपी नीतीश कुमार के कद का कोई नेता तैयार नहीं कर पाई है। यहां बीजेपी या जेडीयू में कोई भी नेता ऐसा नहीं है जिसका कद नीतीश कुमार के इतना बड़ा हो। या उनके विकल्प के रूप में उसे देखा जा सके। ऐसे में बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए एक ही सर्वमान्य नेता रह जाते हैं और वे हैं नीतीश कुमार। ऐसे में बीजेपी चाहकर भी नीतीश को नजरअंदाज नहीं कर सकती।
दूसरी बड़ी वजह है कि नीतीश कुमार के लिए सभी रास्ते खुले होना। अगर बीजेपी एक बार भी उन्हें नजअंदाज करने की कोशिश करेगी तो वे लालू यादव की पार्टी आरजेडी की तरफ कभी भी जा सकते हैं यह बीजेपी भी जानती है। पहले भी नीतीश ऐसा कर चुके हैं। नीतीश कुमार की कुर्सी पर जब भी आंच आती है वे पलट जाते हैं। इसके लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव उन्हें पलटू चाचा तक बुलाते हैं। लेकिन यही नीतीश की खासियत भी है और यही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा डर भी। बीजेपी जानती है कि अगर नीतीश को पाले में नहीं रखेंगे तो कभी भी वे पलट सकते हैं। इससे बीजेपी को राज्य ही नहीं केंद्र में भी नुकसान हो सकता है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी जब बिहार दौरे पर पहुंचते हैं तो उन्हें अपनी सियासत नीतीश के ही इर्द गिर्द करनी पड़ती है ना सिर्फ वे रोड शो के दौरान अपनी गाड़ी में नीतीश को जगह देते हैं बल्कि उन्हें अपना लाड़ला मुख्यमंत्री तक बता देते हैं।
इसके अलावा जो एक बड़ी वजह है वह है आरजेडी का मजबूत होना। पिछली बार, 2020 के विधानसभा चुनावों में भी आरजेडी सबसे बड़ा दल बनकर उभरा था. बीजेपी को 74 सीटें मिली थीं, जबकि आरजेडी को 75 सीटें आई थीं। आरजेडी अभी भी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है और तेजस्वी यादव पूरे महागठबंधन के सर्वमान्य चेहरा बने हुए हैं। आरजेडी की मजबूती को देखते हुए बीजेपी जेडीयू और नीतीश कुमार को नजरअंदाज करने की गुस्ताखी नहीं कर सकती है। यही वजह है कि बीजेपी को यहां झुकना पड़ता है और यहां वो महाराष्ट्र वाली राजनीति नहीं कर पा रही।
पीएम मोदी ने नीतीश कुमार को लेकर जो दांव चला है उसके पीछे एक बड़ी वजह भी है। बीजेपी को पता है कि उम्र के हिसाब से देखें तो यह नीतीश कुमार के लिए अंतिम चुनाव हो सकता है। इसके बाद जेडीयू में कोई ऐसा नेता नहीं है जो उनके कद का हो। अगर बीजेपी नीतीश और उनकी पार्टी से बेहतर संबंध कायम रखती है तो इसके बाद के चुनावों में उसे पूरा फायदा मिलेगा। मतलब साफ है कि बीजेपी नीतीश कुमार के रिटायर होने तक उन्हें और उनकी पार्टी को ही बड़े भाई की भूमिका में रखना चाहती है। जेडीयू से अधिक सीटें लाने के बावजूद उसे पता है कि नीतीश से जुड़े रहने में ही उसे वर्तमान और आने वाले भविष्य में फायदा हो सकता है।
कुछ राजनीतिक पंडित यह भी दावा कर रहे हैं कि बीजेपी नीतीश को अपने साथ रखेगी। इस चुनाव में उन्हें ही नेतृत्व देगी और बाद में उन्हें भारत रत्न देकर उन्हें अभिभावक मंडल में शामिल कर देगी। इससे नीतीश से जुड़े अति पिछड़े वोटर्स बीजेपी के साथ खुद ही आगे के चुनावों में आ जाएंगे। तो कुल मिलाकर बीजेपी बिहार में बहुत ही सधी हुई सियासत खेलने में जुटी है ताकि उसे वर्तमान चुनाव में और आने वाले चुनावों में भी नीतीश के जरिए ही सही फायदा होता रहे।