महाशिवरात्रि आज: जानिए पार्वती की भगवान शिव के प्रति अटूट विश्वास की कहानी
Editor : Manager User | 26 February, 2025
पार्वतीजी को भगवान शिव के प्रति अटूट विश्वास था पार्वतीजी का भगवान शिव से तभी विवाह हो सकता था, तब भगवान शिव के ह्रदय में स्नेह और प्रेमभाव उत्पन्न होता लेकिन वो कैलाश पर्वत पर ध्यान की मुद्रा में बैठे थे। भगवान शिव की इस मनोस्थिति को देखते हुए कामदेव को उनके पास भेजा गया और उन्हें ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वो भगवान शिव को प्रेम से सराबोर कर दें।

Source or Copyright Disclaimer
शिव और शक्ति के मिलन का खास पर्व है शिवरात्रि. यूं तो हर माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी के संयोग को शिवरात्रि कहा जाता है, लेकिन फाल्गुन माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की तिथि महाशिवरात्रि कहलाती है. इस दिन की विशेष मान्यता है कि यह शिव-पार्वती के विवाह का दिन है. प्रयागराज पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह इसलिए भी खास है, क्योंकि बुधवार को ही महाकुंभ का अंतिम अध्याय यानी अंतिम शाही स्नान भी है। महाकुम्भ में महाशिवरात्रि के स्नान का क्या महत्व है? और जिस मोक्ष की तलाश में दुनियाभर से लोग महाकुम्भ में आए, उस मोक्ष का भगवान शिव से क्या रिश्ता है? महाशिवरात्रि का पर्व इसलिए मनाया जाता है क्योंकि, इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। शास्त्रों में भगवान शिव को देवों का देव बताया गया है और उनके कुल 108 रूपों का वर्णन किया गया।
इनमें भी ''अर्द्धनारीश्वर'' का रूप 'शिव-शक्ति' को परिभाषित करता है, जिसमें 'शिवजी' का भी वास है और देवी पार्वती का भी वास है। और बड़ी बात ये है कि, इस शिव-शक्ति का मिलन महाशिवरात्रि के दिन ही हुआ था। और कहते हैं कि मोक्ष की प्राप्ति तभी होती है, जब मनुष्य अपने अंदर भगवान शिव को स्थापित करने में सफल होता है। आज हम आपको उस पौराणिक कथा के बारे में भी बताना चाहते हैं, जिसके कारण महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया था, तब भगवान शिव ने स्वयं को निराशा और अवसाद में खो दिया था। और भगवान शिव की मनोस्थिति से राक्षस ताड़कासुर अच्छी तरह से परिचित था। और उसे ऐसा लगता था कि अब भगवान शिव के लिए कभी भी ''गृहस्थ जीवन'' संभव नहीं होगा और इसी बात का फायदा उठाकर वो अमर होना चाहता था। इसके लिए उसने ब्रह्मांड के निर्माता, भगवान ब्रह्मा की तपस्या शुरू की और जब भगवान ब्रह्मा इस राक्षस के समक्ष प्रकट हुए तो इस राक्षस ने उनसे एक खास वरदान मांगा। और, वो वरदान ये था कि इस राक्षस की मृत्यु भगवान शिव के पुत्र के अलावा किसी और के हाथों नहीं होनी चाहिए। भगवान ब्रह्मा ने तथास्तु कह कर इस राक्षस को ये वरदान दे दिया क्योंकि इस राक्षस को ऐसा लगता था कि माता सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव के लिए गृहस्थ जीवन संभव ही नहीं है, इसलिए इसने खुद को अमर समझ लिया। इसी समय राजा हिमवंत अपनी पत्नी के साथ हिमालय में रहते थे और उनकी पुत्री कोई और नहीं बल्कि पार्वतीजी थीं।
पार्वतीजी को भगवान शिव के प्रति अटूट विश्वास था पार्वतीजी का भगवान शिव से तभी विवाह हो सकता था, तब भगवान शिव के ह्रदय में स्नेह और प्रेमभाव उत्पन्न होता लेकिन वो कैलाश पर्वत पर ध्यान की मुद्रा में बैठे थे। भगवान शिव की इस मनोस्थिति को देखते हुए कामदेव को उनके पास भेजा गया और उन्हें ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वो भगवान शिव को प्रेम से सराबोर कर दें। और इसीलिए उन्होंने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के ह्रदय पर प्रेम का तीर चलाया लेकिन ये तीर भगवान शिव के ह्रदय को स्पर्श करता, उससे पहले ही भगवान शिव की तीसरी आंख खुल गई और उन्होंने कामदेव को 'भस्म' कर दिया। और जब ये प्रयास असफल हो गया, तब पार्वतीजी योगिनी बनने के लिए कैलाश पर्वत पर आकर भगवान शिव की तपस्या करने लगीं और इस तपस्या से भगवान शिव इस कदर प्रसन्न हुए कि उन्होंने ऐसे रूप में पार्वती जी के समक्ष जाने का फैसला किया, जो उन्हें शायद अच्छा नहीं लगता। लेकिन जब इस रूप में भगवान शिव ने पार्वतीजी से ये पूछा कि क्या वो उनसे विवाह करेंगी तो पार्वतीजी ने अगले ही क्षण में अपनी सहमति दे दी और इसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में प्रकट हो गए और बाद में उसी रात्रि को भगवान शिव और पार्वतीजी का विवाह हुआ, जिसकी वजह ये रात्रि महाशिवरात्रि बन गई और बाद में भगवान शिव और पार्वतीजी के सबसे बड़े पुत्र कार्तिकेय ने उस राक्षस का वध किया, जिसने भगवान ब्रह्मा से ये वरदान मांगा था कि उसका विनाश भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही होना चाहिए।
अमेरिका के मशहूर Think Tank, Pew Reserach Center के एक सर्वे के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा 44 पर्सेंट लोग सबसे पहले भगवान शिव की पूजा करते हैं.. 35 पर्सेंट लोग हनुमानजी की पूजा करते हैं.. 32 पर्सेंट लोग भगवान शिव के पुत्र गणेशजी की पूजा करते हैं.. 28 पर्सेंट लोग लक्ष्मीजी की, 21 पर्सेंट भगवान श्री कृष्ण की, 20 पर्सेंट देवी काली की और 17 पर्सेंट लोग सबसे पहले भगवान राम की पूजा करते हैं। और यही कारण है कि इस बार जब महाकुम्भ का समापन महाशिवरात्रि से हो रहा है, तब ज्यादा से ज्यादा लोग महाकुम्भ के संगम में स्नान करना चाहते हैं।