नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने लगाया बीजेपी पर बड़ा आरोप
Editor : Shubham awasthi | 07 June, 2025
लोकतंत्र की रीढ़ माने जाने वाले चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता किसी भी चुनावी प्रक्रिया की आधारशिला होती है। राहुल गांधी का आरोप है कि 2024 के महाराष्ट्र चुनाव में इस संस्था की स्वतंत्रता को खतरे में डाल दिया गया। उनका दावा है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाले पैनल पर कब्जा कर लिया, जिससे इसकी निष्पक्षता

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चुनाव आयोग के आयुक्तों की नियुक्ति हाल के वर्षों में विवाद का विषय रही है। 2023 में पारित एक कानून के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री, और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं। आलोचकों का कहना है कि इस समिति में सत्तारूढ़ दल का प्रभुत्व होने के कारण नियुक्तियां पक्षपातपूर्ण हो सकती हैं। राहुल गांधी का तर्क है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से बीजेपी ने अपने अनुकूल आयुक्तों को नियुक्त किया, जिसने बाद में मतदाता सूची और मतदान प्रक्रिया में हेरफेर की नींव रखी।
हालांकि, इस आरोप का दूसरा पक्ष यह है कि चुनाव आयोग ने हमेशा अपनी स्वतंत्रता का दावा किया है। आयोग का कहना है कि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी है और इसमें सभी पक्षों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। फिर भी, विपक्षी दलों का मानना है कि सत्तारूढ़ दल की प्रभावशाली स्थिति इस प्रक्रिया को संदिग्ध बनाती है।
राहुल गांधी के अनुसार, धांधली का दूसरा कदम था वोटर लिस्ट में फर्जी मतदाताओं को शामिल करना। यह एक गंभीर आरोप है, क्योंकि मतदाता सूची किसी भी चुनाव की विश्वसनीयता का आधार होती है। गांधी का दावा है कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच महाराष्ट्र में लाखों नए मतदाता जोड़े गए, जो असामान्य और संदिग्ध है।
उदाहरण के लिए, गांधी ने कामठी विधानसभा क्षेत्र का उल्लेख किया, जहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 1.36 लाख वोट और बीजेपी को 1.19 लाख वोट मिले थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में, कुछ ही महीनों बाद, बीजेपी को भारी अंतर से जीत मिली, जो उनके अनुसार फर्जी मतदाताओं के कारण संभव हुआ। विपक्ष का कहना है कि मतदाता सूची में हेरफेर करके उन क्षेत्रों में फर्जी मतदाता जोड़े गए, जहां बीजेपी को मजबूत करना था।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि मतदाता सूची को नियमित रूप से अपडेट किया जाता है, और इसमें नए मतदाताओं का पंजीकरण एक सामान्य प्रक्रिया है। आयोग का दावा है कि सभी जोड़े गए मतदाताओं की जांच की जाती है, और कोई भी अनियमितता पाए जाने पर कार्रवाई की जाती है। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं और मांग की है कि मतदाता सूची की स्वतंत्र जांच की जाए
तीसरा चरण, राहुल गांधी के अनुसार, मतदान प्रतिशत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना था। मतदान प्रतिशत चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है। गांधी का आरोप है कि बीजेपी ने उन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत को कृत्रिम रूप से बढ़ाया, जहां फर्जी मतदान की योजना थी।
कांग्रेस ने दावा किया है कि 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कई क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत असामान्य रूप से अधिक था, और यह वृद्धि लोकसभा चुनाव की तुलना में संदिग्ध थी। उदाहरण के लिए, कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत में अचानक 10-15% की वृद्धि दर्ज की गई, जो बिना किसी स्पष्ट कारण के असामान्य माना गया। विपक्ष का कहना है कि यह हेरफेर फर्जी मतदाताओं के वोट को वैध दिखाने के लिए किया गया।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि मतदान प्रतिशत में वृद्धि मतदाताओं की बढ़ती जागरूकता और भागीदारी का परिणाम थी। आयोग ने यह भी कहा कि मतदान के आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं और उनकी जांच की जा सकती है। फिर भी, विपक्ष ने इन आंकड़ों की स्वतंत्र ऑडिट की मांग की है।
चौथा चरण था उन निर्वाचन क्षेत्रों में लक्षित फर्जी मतदान, जहां बीजेपी को जीत सुनिश्चित करनी थी। राहुल गांधी का दावा है कि बीजेपी ने उन सीटों को चिह्नित किया, जहां वह कमजोर थी, और वहां फर्जी मतदाताओं के माध्यम से मतदान कराया गया। यह प्रक्रिया इतनी सुनियोजित थी कि यह सामान्य मतदाताओं और पर्यवेक्षकों की नजरों से बच गई।
कामठी जैसे क्षेत्रों में, जहां लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच मतों का अंतर असामान्य था, विपक्ष का कहना है कि फर्जी मतदान की रणनीति स्पष्ट थी। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में मतदान केंद्रों पर अनियमितताओं की शिकायतें भी सामने आईं, जैसे कि मतदाता पहचान पत्र की अपर्याप्त जांच और बूथ कैप्चरिंग।
चुनाव आयोग ने इन शिकायतों को गंभीरता से लेने का दावा किया है और कहा है कि सभी शिकायतों की जांच की गई। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि इन जांचों का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।
अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण था सबूतों को छिपाना। राहुल गांधी का आरोप है कि धांधली के सभी सबूतों को व्यवस्थित रूप से नष्ट या दबा दिया गया। इसमें मतदाता सूची के रिकॉर्ड, मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज, और अन्य दस्तावेज शामिल हैं।
विपक्ष ने मांग की है कि मतदान प्रक्रिया से संबंधित सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाए, ताकि उनकी स्वतंत्र जांच हो सके। लेकिन उनका कहना है कि चुनाव आयोग ने इस मांग को अनसुना कर दिया। इसके अलावा, कुछ मामलों में, जहां विपक्ष ने सबूत पेश करने की कोशिश की, उन्हें कानूनी या प्रशासनिक बाधाओं का सामना करना पड़ा।
चुनाव आयोग का कहना है कि सभी रिकॉर्ड सुरक्षित हैं और आवश्यकता पड़ने पर उनकी जांच की जा सकती है। लेकिन आलोचकों का मानना है कि इन रिकॉर्ड तक पहुंच को सीमित करके धांधली को छिपाने की कोशिश की गई।
दरअसल, पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का यह तीसरा कार्यकाल है. पहली बार नरेंद्र मोदी ने 11 साल पहले 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी यानी अब 2014 से 2025 तक 11 साल पूरे होने पर जनता के बीच जानकर प्रचार करने का फैसला किया गया है. पार्टी हाईकमान की ओर से नेताओं को जनता के बीच जाकर अपने काम बताने के लिए कहा गया है. इसके अलावा पार्टी स्तर पर भी इसको लेकर तैयारी की है. पार्टी के नेता भी देशभर में जाकर छोटी-छोटी गोष्ठियों और सभाओं समेत कई तरह के कार्यक्रम करने वाले हैं.